गर्भावस्था में होने वाली समस्याएं: कारण, लक्षण और बचाव
Summary: गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को गैस, कब्ज, उल्टी, कमजोरी, पीठ दर्द, सांस फूलना और खून की कमी जैसी कई आम समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएं हार्मोनल बदलाव, शारीरिक परिवर्तन और पौष्टिकता की कमी के कारण होती हैं। समय पर ध्यान और सही देखभाल से इनसे राहत पाई जा सकती है। जरूरत से ज्यादा लक्षण दिखने पर डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है।
Overview
नई ज़िंदगी की शुरुआत जितनी रोमांचक होती है, उतनी ही चुनौतियों से भरी भी होती है। जब एक महिला गर्भवती होती है, तो उसका शरीर और मानसिक स्थिति कई तरह के बदलावों से गुजरती है। ये बदलाव कभी-कभी असहज कर सकते हैं और कई समस्याओं का कारण भी बन सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान कुछ समस्याएं (problems during pregnancy) आम होती हैं, लेकिन सही जानकारी न होने पर महिलाएं अक्सर घबरा जाती हैं। यहां हम गर्भावस्था के समय होने वाली आम दिक्कतों, उनके कारण और लक्षणों पर बात करेंगे।
गर्भावस्था के दौरान होने वाली 9 आम समस्याएं - 9 Common Problems During Pregnancy
1. पाचन संबंधी समस्याएं (Digestive Problems)
गर्भावस्था में प्रोजेस्टेरोन हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है, जो पाचन प्रक्रिया (Digestion) को धीमा कर देती है। इसके अलावा, गर्भाशय का आकार बढ़ने से आंतों पर दबाव पड़ता है, जिससे गैस, अपच और कब्ज की शिकायत होती है।
लक्षण:
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गैस (Gas)
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अपच (Indigestion)
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पेट में भारीपन (Heaviness in Stomach)
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सीने में जलन (Acidity)
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कब्ज (Constipation)
मिराकल्स अपोलो क्रेडल अस्पताल में गुड़गांव के सर्वश्रेष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञों में से एक, (सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल)डॉ. पुनिता अरोड़ा कहती हैं: "हर दो से तीन घंटे में थोड़ा-थोड़ा खाएं। रात को खाना जल्दी खाएं और खाने के बाद तुरंत लेटने से बचें। यदि एसिडिटी (Acidity)ज्यादा हो तो डॉक्टर से ऐंटासिड लेने की सलाह लें।"
उपाय:
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दिन में 4–5 बार हल्का भोजन करें
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अधिक पानी पिएं
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फाइबर युक्त आहार लें जैसे हरी सब्जियां, फल, दालें
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चाय, कॉफी और मसालेदार भोजन से परहेज़ करें
2. दांतों की समस्याएं (Dental Problems)
गर्भावस्था में शरीर में ब्लड फ्लो बढ़ जाता है, जिससे मसूड़े संवेदनशील हो जाते हैं। प्रेग्नेंसी जिंजिवाइटिस (Pregnancy Gingivitis) एक आम समस्या है। सुबह की मिचली (Morning Sickness) के कारण पेट का एसिड मुंह में आकर दांतों को नुकसान पहुंचा सकता है।
लक्षण:
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मसूड़ों की समस्याएँ (Gum Problems) जैसे मसूड़ों में सूजन या उनसे खून आना (Gum Bleeding)
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दांतों में दर्द या सेंसिटिविटी (Tooth Sensitivity)
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सांस की दुर्गंध (Bad Breathing)
समाधान:
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दिन में दो बार सॉफ्ट ब्रश से ब्रश करें
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नियमित रूप से डेंटिस्ट से जांच कराएं
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मीठे और चिपचिपे खाने से बचें
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नमक वाले गुनगुने पानी से कुल्ला करें
3. श्रोणि में दर्द (Pelvic Pain)
गर्भाशय का आकार बढ़ने से श्रोणि की हड्डियों (Bones) और लिगामेंट्स (Ligaments) पर दबाव बढ़ता है। हार्मोन 'Relaxin' की अधिकता से जोड़ों में लचीलापन आता है, जिससे दर्द हो सकता है।
लक्षण:
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पेट के निचले हिस्से (Lower Abdominal Pain)
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कमर में असहजता (Back Pain)
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चलने, बैठने या करवट बदलते समय तकलीफ
समाधान:
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अधिक देर तक खड़े न रहें
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सहारा देकर बैठें
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शरीर को लचीला रखने के लिए प्रीनेटल योगा (Prenatal Yoga) और स्ट्रेचिंग (Stretching Exercises) करें
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डॉक्टर की सलाह से सपोर्ट बेल्ट पहनें
4. पीठ में दर्द (Back Pain)
बढ़ते वजन और हार्मोनल बदलाव के कारण पीठ की मांसपेशियों पर तनाव बढ़ता है। सही मुद्रा न होने से समस्या और बढ़ जाती है।
लक्षण:
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लोअर बैक में दर्द या खिंचाव (Lower Back Pain)
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लंबे समय तक बैठने (Prolonged Sitting) या खड़े रहने पर परेशानी
समाधान:
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सीधे बैठें, तकिए का सहारा लें
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ज़्यादा ऊँची एड़ी के जूते न पहनें
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गर्म पानी से सिकाई (Hot Fomentation)करें
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डॉक्टर से सलाह लेकर फिजियोथेरेपी (Physiotherapy) करवाएं
5. जोड़ों की समस्या (Joint Problem)
गर्भावस्था में फ्लूइड रिटेंशन (पानी का शरीर में जमा होना) और वजन बढ़ने से जोड़ों पर दबाव पड़ता है। यह खासकर हाथों और घुटनों में महसूस होता है।
लक्षण:
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हाथ, घुटनों या टखनों में दर्द (Knee Pain)
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अकड़न या सूजन (Stiffness or Swelling)
समाधान:
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ज्यादा देर तक एक ही स्थिति में न रहें
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आराम करें और पैर ऊपर करके बैठें
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हाथ-पैरों की हल्की मालिश करें
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नमक की मात्रा सीमित करें
6. सांस लेने में तकलीफ (Breathing Problem)
गर्भाशय के बढ़ने से डायाफ्राम ऊपर की ओर धकेला जाता है, जिससे फेफड़ों (Lungs) को पूरी तरह फैलने में कठिनाई होती है। इससे सांस फूल सकती है।
लक्षण:
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सीढ़ियाँ चढ़ते समय जल्दी थकान
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सांस फूलना (Breathlessness)
समाधान:
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सीधी मुद्रा में बैठें
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गहरी सांस लेने की एक्सरसाइज करें
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जरूरत से ज्यादा शारीरिक मेहनत न करें
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डॉक्टर से जांच करवाएं यदि समस्या बढ़ रही हो
7. खून की कमी (Anemia)
शरीर को इस समय अधिक खून (Blood) की आवश्यकता होती है। अगर आयरन (Iron) और फोलिक एसिड (Folic Acid) की पर्याप्त मात्रा न हो, तो एनीमिया (Anemia) हो सकता है।
लक्षण:
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थकान (Fatigue)
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चक्कर आना (Dizziness)
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त्वचा का पीला पड़ना (Yellow skin)
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सांस फूलना (Breathlessness)
समाधान:
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आयरन युक्त भोजन लें (जैसे पालक, चुकंदर, अनार, गुड़)
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डॉक्टर द्वारा बताए गए आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां नियमित लें
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हरे पत्तेदार सब्जियों को भोजन में शामिल करें
8. मूड स्विंग्स (Mood Swings)
हार्मोनल असंतुलन (Hormonal Imbalance) और शारीरिक थकान मानसिक स्थिति को प्रभावित करते हैं। पहली और तीसरी तिमाही में मूड स्विंग्स अधिक होते हैं।
लक्षण:
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बार-बार मूड बदलना
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चिड़चिड़ापन (Irritation)
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चिंता और उदासी (Tension and Sadness)
समाधान:
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परिवार और दोस्तों से बात करें
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गहरी सांस लें, ध्यान (Meditation) करें
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अच्छा संगीत सुनें या अपनी पसंदीदा गतिविधियों में शामिल रहें
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जरूरत हो तो मनोचिकित्सक से सलाह लें
9. हाई बीपी और गर्भावधि मधुमेह (BP & Gestational Diabetes)
गर्भावस्था में रक्तचाप और शुगर का असंतुलन खतरनाक हो सकता है। यह माँ और बच्चे दोनों के लिए जोखिमपूर्ण हो सकता है।
लक्षण:
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सिरदर्द (Headache)
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धुंधला दिखना (Blurred Vision)
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अत्यधिक प्यास लगना (Excessive Thirst)
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बार-बार पेशाब आना (Frequent Urination)
समाधान:
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नियमित रूप से बीपी और शुगर की जांच कराएं
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नमक और मीठा सीमित मात्रा में लें
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डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाएं समय पर लें
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संतुलित आहार और हल्की एक्सरसाइज करें
निष्कर्ष (Conclusion):
गर्भावस्था के दौरान शरीर में होने वाले ये बदलाव पूरी तरह सामान्य हैं, लेकिन जागरूकता और सही देखभाल से आप इन समस्याओं को कम कर सकती हैं। यदि किसी भी समस्या के लक्षण ज्यादा बढ़ जाएं या लंबे समय तक बने रहें, तो डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। अगर आपको गर्भावस्था के दौरान कोई समस्या (Health Problems in Pregnancy) हो रही है, तो अपने नज़दीकी मिराकल्स हेल्थकेयर में अनुभवी स्त्री रोग विशेषज्ञ (Gynaecologist near you) से सलाह लें। क्योंकि सुरक्षित माँ और स्वस्थ बच्चे के लिए समय पर कार्रवाई करना महत्वपूर्ण है।
Frequently Asked Questions
गर्भाशय के बढ़ने, गैस, कब्ज या लिगामेंट्स में खिंचाव के कारण पेट में हल्का दर्द हो सकता है।
बढ़ते वजन और हार्मोनल बदलाव के कारण रीढ़ की हड्डी और पीठ की मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है।
गर्भाशय के बढ़ने से डायाफ्राम पर दबाव पड़ता है, जिससे फेफड़े पूरी तरह नहीं फैल पाते और सांस फूल सकती है।
वजन बढ़ने, नसों पर दबाव और ब्लड सर्कुलेशन में बदलाव के कारण पैरों में दर्द या ऐंठन हो सकती है।
‘Relaxin’ हार्मोन की वजह से कूल्हों की हड्डियाँ और लिगामेंट्स ढीले हो जाते हैं, जिससे दर्द होता है।
हार्मोनल बदलाव और दूध की ग्रंथियों के विकास के कारण स्तनों में सूजन और संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
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